प्रसिद्ध चार धाम यात्रा
चार धाम यात्रा उत्तराखण्ड के यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री, केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ पर समाप्त होती है।
1. यमुनोत्री –
उत्तरकाशी जनपद में स्थित यमुनोत्रीतल से 4421 मी. की ऊंचाई पर बंदरपूंछ पर्वत पर स्थित है यहाँ का मुख्य मंदिर यमुना देवीको समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण जयपुरकी महारानी गुलेरिया ने 19 वीं सदी में बनाया था। भूकम्प से नष्ट होने के कारण इस मंदिर का पुनर्निमाण1919 में टिहरी नरेश महाराजाप्रताप शाह ने बनाया।
यमुना मंदिर व सूर्यकुण्ड के निकट गरमपानी के स्त्रोत हैं। सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशीला पूजन के पश्चात ही यमुनोत्री मंदिर में पूजा करने का प्रावधान है। यमुनोत्री मंदिर के निकट 4 किमी. की दूरी पर सप्तऋषि कुण्ड है। यमुनोत्री मंदिर के कपाट खुलने का समय अप्रैल-मई है और यमुनोत्री मंदिर के कपाटअक्टूबर-नवम्बर में बंद कर दिये जाते हैं।
2. गंगोत्री –
उत्तरकाशी जनपद में भागीरथी नदी के दायें तट पर गंगा नदी को समर्पित एस मंदिर की स्थापना 18वीं सदी के उत्तरार्ध में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने की और पुनरुद्धार जयपुर के राजा माधो सिंह ने कराया था। यहाँ पर गंगा नदी की धारा उत्तर दिशा की ओर मुड़ने से इस स्थान का नाम गंगोत्रीपड़ा। गंगोत्री समुद्र तल से 3140 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। कहा जाता है कि यहाँ पर राजा भागीरथ ने आराधना कि थी। यहाँ से 28 किमी. कि दूरी पर भागीरथी का मुख्य उद्गम स्थल गोमुख है।
गोमुख का अर्थ पृथ्वी पर सर्वप्रथम सूर्य कि प्रथम किरणों का स्पर्श स्थल है। गंगोत्रीमंदिर के कपाट प्रतिवर्ष अप्रैल में अक्षय तृतीय को खुलते हैं और इसी दिन माँ गंगा की डोली उनके शीत ऋतु प्रवास मुखवा ग्राम के मार्कण्डेय मंदिर से गंगोत्री के लिए रवाना होती है।
3. केदारनाथ –
यह देश के 112 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। इस मंदिर के कपाट श्रावणपुर्णिमा के दिन खुलते हैं। समुद्र तल से 3500 मी. कि ऊंचाई पर स्थित है। यह रुद्रप्रयाग जिले में पड़ता है। संस्कृत में केदार शब्द का प्रयोग दलदली भूमि या धन की रोपाई वाले खेत के लिए होता है। केदारनाथ में शिव के पिछले भाग की पूजा की जाती है। गरुड पुराण के अनुसार केदारनाथ ऐसा तीर्थ है जो समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है। कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर की स्थापना पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय ने की थी।
यहाँ भगवान शंकर शिवलिंगके बजाय तिकोनी शीला के रूप में हैं। केदारनाथ मंदिर के पिछले भाग में शंकरचार्य कि समाधि है। मंदिर के गर्भ गृह में त्रिकोण आकृति की बहुत बड़ी ग्रेनाइट की शीला है। जिसकी भक्तगणों द्वारा पूजा की जाती है। केदारनाथ का अन्य नाम सप्त सामुद्रिक तीर्थ भी है। यहाँ अनेक कुण्ड हैं जिसमें से शिव कुण्ड मुख्य है। एक लाल पानी वाला रुधिर कुण्ड भी है।
4. बद्रीनाथ –
यह समुद्र तल से 3100 मी. की ऊंचाई पर देश के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ को सतयुगमें मुक्तिप्रदा, त्रेता युगमें योगसिद्धा, द्वापर युगमें विशाला एवं कलयुग में बद्रीकाश्रम कहा गया है। इस मंदिर का निर्माण शंकराचार्य ने किया था। यह अत्यधिक ऊँचे नीलकंठपर्वत शिखर के भव्य पृष्ठ पट सहित, नर एवं नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के पार्श्व में स्थित है। इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 15 वीं शताब्दी गढ़वाली राजा अजयपाल ने प्रदान किया परन्तु पूर्ण भव्यमंदिरबनाने का श्रेय कत्यूरी राजवंश को जाता है।
विशाल राजा का क्षेत्र होने से इसका नाम बद्रीविशालपड़ा। यह मंदिर 3 भागों में विभाजन है। गर्भगृह, दर्शनमण्डल, सभामण्डल बद्रीनाथ तीर्थ में स्थित प्रमुख गुफाएं हैं स्कन्द गुफा, मुचकुंद गुफा, गरुडशिला गुफा एवं राम गुफा। बद्रीनाथ से आगे माणा गांव के पास गणेश गुफा एवं व्यास गुफा है। बद्रीनाथ में ही भगवान बद्रीनाथ की माता का ‘मातामूर्ति मंदिर’ स्थापित है।