पंचकेदार
1. केदारनाथ – रुद्रप्रयाग में स्थित केदारनाथ शिवाजी के 12 ज्योर्तिलिंगों में से 11 वां श्रेष्ठ ज्योर्तिलिंग माना जाता है। इस मंदिर के कपाट श्रावण पूर्णिमा के दिन खुलते हैं। समुद्र ताल से 3584 मी. की ऊंचाईपर स्थित है। संस्कृत में केदार शब्द का प्रयोग दलदली भूमि या धान की रोपाई वाले खेत के लिए होता है।
यह मंदिर खर्चाखंड और भरतखंडशिखरों के पास केदार शिखर पर स्थित है। केदारनाथ में शिव की पिछले भाग की पूजा की जाती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार केदारनाथ ऐसा तीर्थ है जो समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है। कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर कि स्थापना पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय ने की थी।
यह मंदिर छत्र प्रासाद युक्त है। यहाँ भगवान शंकर शिवलिंग के बजाय तिकोनी शिला के रूप में हैं। केदारनाथ मंदिर के पिछले भाग में शंकरचार्य कि समाधि है। मंदिर के गर्भ गृह में त्रिकोण आकृति की बहुत बड़ी ग्रेनाइट की शीला है। जिसकी भक्तगणों द्वारा पूजा की जाती है।
2. मदमहेश्वर – मदमहेश्वर, पंचकेदार के अन्तर्गत द्वितीय केदार माना जाता है। यह मंदिर चौखम्भा शिखर पर 3298 मी. की ऊंचाई पर स्थित है।यह मंदिर केदारनाथ मंदिर के समान छत्र-शैली का है जो बड़े-बड़े पत्थरों को तराशकर बनाया गया है।
यहा मंदिर गुप्तकाशी से 32 किमी. कि दूरी पर है। पांडव शैली के इस शिव मंदिर के आसपास वर्षा ऋतु में ब्रहमकमलखिलते है। यहाँ पर भगवान शिव के नाभि की पूजा की जाती है।
शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होने पर मदमहेश्वर की पूजा ऊखीमठ में की जाती है। यहाँ से 2 किमी. की दूरी पर धौला क्षेत्रपाल नमक गुफा भी है।
3. तुंगनाथ – यह मंदिर समुद्र तल से 3680 मी. की ऊंचाई पर ऊखीमठ-गोपेश्वर मार्ग पर 30 किमी. की दूरी पर चंद्रनाथ पर्वत के शिखर प स्थित है। शिव के इस मंदिर में गुंबजके सम्पूर्ण विस्तार में 16 द्वार है।यहाँ आदि गुरु शंकराचार्य की एक 2.5 फूट लंबी मूर्ती स्थित है।
यह तश्तरी केदार है। यहाँ पर शिव की भुजाओं की विशेष पूजा की जाती है क्योकि इस स्थान पर शिवजी भुजा या बाँह के रूप में विद्यमान है। मंदिर के समीप एक रावण शिला है कहा जाता है कि यहीं पर रावणने भगवान शंकर की आराधना की थी।
शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद हो जाने पर तुंगनाथ की पूजा मंक्कूमठ में होती है। यह राज्य का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर है।
4. रुद्रानाथ – यह चतुर्थ केदार है और समुद्र तल से 2286 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर गोपेश्वर, चमोली से 18 किमी. की दूरी पर स्थित है।ऐसी मान्यता है कि शरीर त्यागने के पश्चात् लोगों की आत्मा यहाँ स्थित वैतरणी नदी पार करके आगे बढ़ती है। इस मंदिर में शिव के मुख की पूजा होती है।
रुद्रनाथ से द्रोणगिरि, चौखम्बा,नन्दादेवी आदि पर्वत शिखर दिखाई देते हैं। यह क्षेत्र ब्रह्मकमल के लिए जग प्रसिद्ध है। शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद हो जाने पर रुद्रानाथ की पूजा गोपेश्वर मंदिरमंि होती है।
5. कल्पेश्वर – यह पांचवा केदारहै। यहाँ शिव की जटाओं की पूजा होती है। समुद्र तल से 2134 मी. की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर चमोली जिले में पड़ता है।
कहते हैं कि इस स्थान पर अप्सरा उर्वशी तथा दुर्वासाऋषि ने कल्पवृक्षके नीचे बैठकर तपस्या की थी।
पंचबदरी
1. बद्रीनाथ – यह समुद्र तल से 3100 मी. की ऊंचाई पर देश के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ को सतयुग में मुक्तिप्रदा, त्रेता युग में योगसिद्धा, द्वापर युग में विशाला एवं कलयुग में बद्रीकाश्रम कहा गया है।इस मंदिर का निर्माण शंकराचार्य ने किया था।
बद्रीनाथ गंधमादन पर्वत श्रंखलाओं के बीच स्थित है। इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 15 वीं शताब्दी में अजयपाल ने किया। विशाल राजा का क्षेत्र होने से इसका नाम बद्रीविशालपड़ा।
यह मंदिर 3 भागों में विभाजित है। गर्भगृह, दर्शनमण्डल, सभामण्डल, बद्रीनाथ से 3 किमी. दूर व्यास गुफा और गणेश गुफा और मंजकुण्डगुफा स्थित है। मंदिर से कुछ नीचे अलकनंदा के पास में गरम जलधारा तप्त कुण्ड है।
पंचधारा
- भृगु धारा
- इन्द्र धारा
- कुर्म धारा
- प्रहलाद धारा
- उर्वशी धारा
पंचशिला
- गरुड शिला
- नारद शिला
- मार्केण्डेय शिला
- नरसिंह शिला
- वाराह शिला
सभी पंचशिलाऐ और पंचधाराऐ बद्रीनाथ के समीप और चमोली जनपद में स्थित है।
2. आदि बदरी – चमोली जनपद में स्थित आदिबदरीसमुद्र तल से 920 मीटर की ऊंचाई पर कर्णप्रयाग से 21 किमी. की दूरी पर रानीखेत चौखुटिया मार्गपर अवस्थित है। आदिबदरी को स्थानीय भाषा में ‘नौठा’ कहा जाता है।
यह मुख्य रूप से 14 मंदिरोंका एक समूह है। यहाँ के मुख्य मंदिर में भगवान विष्णुकी प्रतिमा 1मीटर ऊंची है। जिसे काले पत्थर में निर्मित किया गया है। विष्णु भगवान ही आदि बद्रीनाथ हैं।
3. वृद्ध बदरी – बद्रीनाथ मार्ग पर 1380मीटर की ऊंचाई पर जोशीमठ से 7 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहां पर भगवान विष्णु ने वृद्ध सन्यासियों को दर्शन दिये थे।
अतः इसी कारण यहाँ का नाम वृद्ध बदरी पड़ा। आदि गुरु शंकराचार्य ने यहाँ वृद्ध बदरी की मूर्ति की स्थापना की थी। अतः यह पहली वृद्ध या पहली बदरी कहलाती है।
4. भविष्य बदरी – चमोली जनपद के जोशीमठसे 25 किमी. की दूरी पर समुद्र तल से 2744 मी.की ऊंचाई पर भविष्य बदरी स्थित है। यहां पर भगवान विष्णु की आधी आकृति की पूजा की जाती है।
लोकमान्यता है कि घोर कलयुग आने पर नर नारायण पर्वत आपस में मिल जायेंगे तब तब बद्रीनाथ की यात्रा नामुमकिन हो जायेगी और भविष्य बदरी में यह मूर्ति पूर्ण होकर भगवान भविष्य बदरी में प्रकट होंगे और बद्रीनाथ की पूजा भविष्य बदरी में होने लगेगी।
5. योगध्यान बदरी – चमोली जनपद के जोशीमठसे 24 किमी. की दूरी पर पाण्डुकेश्वर में योगध्यान बदरी है।कहा जाता है कि यहां पर पाण्डु अपनी पत्नियों कुन्ती एवं माद्री के साथ रहते थे और पांडवों का जन्म यही हुआ।
यहां पर भगवान विष्णु योग साधना में लीन हैं।
शीतकाल में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने पर बद्रीनाथ जी की मूर्ति यहां लाई जाती है।
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