Varnmala ( वर्णमाला / Alphabet )
भाषा के द्वारा मनुष्य अपने भाव-विचारों को दूसरे के समक्ष प्रकट करता है तथा दूसरों के भावो-विचारों को समझता है। आरम्भ में किसी बात को सुरक्षित रखने का एक ही साधन था – याद रखना। अपनी भाषा को सुरक्षित रखने, उसे नेत्रों के लिए दृश्यमान बनाए और भावी सन्तति के स्थान और काल की सीमा से निकाल कर अमर बनाने की ओर मनीषियों का ध्यान गया।
वर्षों बाद मनीषियों यहा अनुभव किया कि उनकी भाषा में जो ध्वनियाँ प्रयुक्त हो रहीं हैं, उनकी संख्या निश्चित है और इन ध्वनियों के योग से शब्दों का निर्माण हो सकता है। बाद में इनहि उच्चारित ध्वनियों के लिए लिपि से अलग-अलग चिन्ह बना लिए गए, जिन्हें वर्ण कहते हैं। इस प्रकार जिन ध्वनियों के संयोग से शब्द निर्माण होता है, वे वर्ण कहलाते हैं। भाषा कि सार्थक इकाई वाक्य है। वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य, उपवाक्य से छोटी इकाई पदबन्ध, पदबन्ध से छोटी इकाई अक्षर और अक्षर से छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण है।
- हिन्दी में उच्चारण के आधार पर वर्णो की संख्या 45 (10 स्वर + 35 व्यंजन) मानी गई है।
- हिन्दी में लेखन के आधार पर वर्णों के आधार पर 52 (13 स्वर + 35 व्यंजन + 4 संयुक्त व्यंजन) होती है।
स्वर – स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण ‘स्वर’ कहलाते हैं।
- परंपरागत रूप में स्वरों की संख्या 13 मानी गई है।
- उच्चारण की दृष्टि से केवल 10 ही स्वर हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
स्वरों का उच्चारण या वर्गीकरण –
- मूल स्वर/ह्रस्व स्वर – जिनके उच्चारण में कम समय (एक मात्रा का समय) लगता है। (अ, इ, उ)
- दीर्घ स्वर – जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से अधिक समय (दो मात्र का समय) लगता है। (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ)
- प्लुत स्वर – जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है; किसी को पुकारने में या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग किया जाता है। (ओ३म, रा३म)
व्यंजन – स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण ‘व्यंजन’ कहलाते हैं।
- स्पर्श व्यंजन –
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा फेफड़ों से निकलते हुए मुँह के किसी स्थान-विशेष कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत या होठ का स्पर्श करते हुए निकले।
वर्ग | उच्चारण स्थान | अघोष अल्पप्राण | अघोष महाप्राण | अल्पप्राण सघोष | सघोष महाप्राण | अल्पप्राण सघोष नासिक |
‘क’ वर्ग | कण्ठ | क | ख | ग | घ | ङ |
‘च’ वर्ग | तालु | च | छ | ज | झ | ञ |
‘ट’ वर्ग | मूर्धा | ट | ठ | ड | ढ | ण |
‘त’ वर्ग | दन्त्य | ट | थ | द | ध | न |
‘प’ वर्ग | ओष्ठ | प | फ | ब | भ | म |
- अन्तःस्थ व्यंजन –
जिन वर्णो का उच्चारण पारंपरिक वर्णमाला (Alphabet / Varnmala) के बीच अर्थात् स्वरों और व्यंजनों के बीच स्थित हो।
वर्ग | उच्चारण स्थान | ||
य | तालव्य | तालु | सघोष,अल्पप्राण |
र | वत्सर्य | दंतमूल/मसूढ़ा | |
ल | वत्सर्य | दंतमूल/मसूढ़ा | |
व | दंतोष्ठ्य | ऊपर के दाँत + निचला ओंठ |
ऊष्म/संघर्षी व्यंजन –
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु मुख में किसी स्थान-विशेष पर घर्षण/रगड़ खा कर निकले और ऊष्मा/गर्मी पैदा करे।
वर्ग | उच्चारण स्थान | |
श तालव्य | तालु | सघोष,अल्पप्राण |
ष मूर्धन्य | मूर्धा | |
स वत्सर्य | दंतमूल/मसूढ़ा | |
ह स्वरयंत्रीय | स्वरयंत्र (कण्ठ के भीतर स्थित) | सघोष,महाप्राण |
आयोगवाह – अं, अः
संयुक्त व्यंजन –
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों कि सहायता लेनी पड़ती है, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं :-
- क् + ष = क्ष
- त् + र = त्र
- ज् + ञ = ज्ञ
- श् + र = श्र
द्विगुणी / उत्क्षिप्त व्यंजन –
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की उल्टी हुई नोंक तालु को छूकर झटके से हट जाती है, उन्हे द्विगुणी/उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। ड़, ढ़ द्विगुणी/उत्क्षिप्त व्यंजन हैं।
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